The Definitive Guide to Shodashi
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In Yet another depiction of hers, she's proven like a sixteen-yr-old youthful and sweet Lady decorated with jewels by using a dazzling shimmer as well as a crescent moon adorned more than her head. She's sitting down within the corpses of Shiva, Vishnu, and Brahma.
वास्तव में यह साधना जीवन की एक ऐसी अनोखी साधना है, जिसे व्यक्ति को निरन्तर, बार-बार सम्पन्न करना चाहिए और इसको सम्पन्न करने के लिए वैसे तो किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है फिर भी पांच दिवस इस साधना के लिए विशेष बताये गये हैं—
The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, improving internal relaxed and emphasis. Chanting this mantra fosters a deep perception of tranquility, enabling devotees to enter a meditative state and link with their interior selves. This advantage enhances spiritual awareness and mindfulness.
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The supremely lovely Shodashi is united in the center of the infinite consciousness of Shiva. She eliminates darkness and bestows gentle.
ह्रीं श्रीं क्लीं त्रिपुरामदने सर्वशुभं साधय स्वाहा॥
पुष्पाधिवास विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि
Chanting the Mahavidya Shodashi Mantra generates a spiritual shield all-around devotees, shielding them from negativity and damaging influences. This mantra acts like a supply of safety, aiding men and women manage a favourable environment cost-free from psychological and spiritual disturbances.
हन्यादामूलमस्मत्कलुषभरमुमा भुक्तिमुक्तिप्रदात्री ॥१३॥
कामेश्यादिभिराज्ञयैव ललिता-देव्याः समुद्भासितं
यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach
यामेवानेकरूपां प्रतिदिनमवनौ संश्रयन्ते विधिज्ञाः
इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत website के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥